Sunday, September 16, 2012

किसी रोज़ आंसू ही न बचेंगे बहाने को!


आज जी भर के रो लूँ
कल आंसू बहें ना बहें

आज दिल भर गम लूँ
कल गम सहने का जिगर रहें ना रहें

पकड़ कर रहेना चाहती हूँ जाने वालो का दामन
वो धुप में दमके दिन क्षण, पानी में भीगे पल उस सावन

थाम लूँ हाथ उनका हाथ में
ना घडी की टिक-टिक सुनु न देखूं कहाँ पहुंचा हैं समय

सर को अपनी गोदी में रख, चूम लूँ वो आँखें, वो माथा, वो लब
जाने किस जहाँन में मिलेंगे जो बिछड़ के रह गए उनसे अब

ना देखूं हाथ गंदे, ना साँसों में लूँ दुर्गन्ध
रिश्ते की अटटूता को समझते, बिखरने से बचाऊँ यह अजीबोगरीब सम्बन्ध

आँखों में सारी भावनाए पढ़ लूँ, ख़ामोशी में एक पूरी दास्तान
जब यह धेह हो जाये ख़तम, तो क्या रह जायेगा यह मन, यह मान 

बाँध लूँ पक्की गांठे उन साथ बीते पलों की
रह जाऊं जब अकेली, याद दिलाये जो गुज़रे समय का यकीन

आज बह जाने दूँ आंसुओं को, रोकू ना इस बाड़ को
कल किसी अकेले मोड़ पर थकी आँखों से कोई बूँद बहे ना बहे!


ल. अरुणा धीर 



(A heartfelt tribute to our dearest CHERIE, who left us for her permanent place in heaven at 9 PM on Friday, the 14th of September 2012)