Pic. courtesy - Los Ojos Perdidos
नींद की चादर तार-तार हो
छन् सी गयी है
ढांकती कम, परेशानीयों की परते खोलती ज्यादा है
सूरज की गर्मी अब मन को सेंकती नहीं
शरीर को जलाती ज़रूर है
चाँद छुपता चला जाता है
मस्तिष्क के अंधेरों में
तारे टिमटिमाते हैं
मगर दूर कहीं पहुँच और आशा से
मैं ज़िन्दगी की रेस में थक सा गया हूँ
कभी उठकर मौके का दरवाज़ा खोलना
मुश्किल सा लगने लगता है
कभी विश्वास की आवाज़ थक कर
शांत पड जाती है
कभी हिम्मत साथ छोड़
हाथ खड़े कर देती है
मैं ज़िन्दगी की रेस में थक सा गया हूँ
मंजिल क्या है
पहचान नहीं आती
उस तक पहुँचने का रस्ता
भूल सा गया हूँ
बीच
में आते पड़ाव
अब थकान कम, रफ़्तार ज्यादा घटाते हैं
हमसफ़र अब बेवजह सोच और परेशानी बन गए हैं
अब थकान कम, रफ़्तार ज्यादा घटाते हैं
हमसफ़र अब बेवजह सोच और परेशानी बन गए हैं
मैं
ज़िन्दगी की रेस में थक सा गया हूँ
चिड़ियों की हंसी, बारिश की बूंदों की टिप-टिप
कभी शोर से लगते हैं
कभी लगता है
फूल मुस्कुराकर
मजाक उड़ा रहे हैं
पत्झर के पत्ते
आगे का हाल सुना रहे हैं
मैं ज़िन्दगी की रेस में थक सा गया हूँ
कई दिन विचलित मन
उमंग का लिबास और जोश का साफा नहीं पेहेनता
विचार समझदारी के कपडे उतार देतें हैं
भावनाएं दिनों के उतiर-चड़ाव में
अपना संतुलन खो देंती हैं
मैं ज़िन्दगी की रेस में थक सा गया हूँ
कई बार समेटता हूँ
अपने बिखरे अरमानो को
चाहत के धागों से
बुनता हूँ अपनी क्षमता के लिहाफ को
पर कई बार, ज़िन्दगी की रेस में थक सा जाता हूँ!
चिड़ियों की हंसी, बारिश की बूंदों की टिप-टिप
कभी शोर से लगते हैं
कभी लगता है
फूल मुस्कुराकर
मजाक उड़ा रहे हैं
पत्झर के पत्ते
आगे का हाल सुना रहे हैं
मैं ज़िन्दगी की रेस में थक सा गया हूँ
कई दिन विचलित मन
उमंग का लिबास और जोश का साफा नहीं पेहेनता
विचार समझदारी के कपडे उतार देतें हैं
भावनाएं दिनों के उतiर-चड़ाव में
अपना संतुलन खो देंती हैं
मैं ज़िन्दगी की रेस में थक सा गया हूँ
कई बार समेटता हूँ
अपने बिखरे अरमानो को
चाहत के धागों से
बुनता हूँ अपनी क्षमता के लिहाफ को
पर कई बार, ज़िन्दगी की रेस में थक सा जाता हूँ!
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